पश्चिम बंगाल का ऐतिहासिक हारूप मेला का इतिहास

हारूप पोखर (ईड़गुनाथ ) मेला झारखंड और पश्चिम बंगाल सीमापवर्ती क्षेत्र के हारूपडीह गांव में प्रसिद्ध 15 जून जेष्ठ माह के अंतिम दिन मे मेला का आयोजन होता है। जिसे देखने के लिए झारखण्ड और बंगाल सहित को राज्य से हजारों की संख्या में लोग पहुंचते है।

पौराणिक कथाएं –

हारुप मेला को लेकर लोगों का मानना है कि भगवान शिवजी और पार्वती के बीच झगड़ा हुआ था, जिससे नाराज होकर पार्वती जा रही थी, लेकिन शिवजी ने जाने से रोका तो वह नहीं मानी। तब शिवजी ने गुस्से में आकर पार्वती जी का नाक को ही काट दिया था इसलिए उस स्थान को नकटीथान के नाम से भी मशहूर है। नकटीथान स्थान पर भगवान शिवजी का मूर्ति नग्न अवस्था में है इसलिए लोग उस जगह को ईड़गुनाथ नाम से भी जानते है।

(ईड़गुनाथ मंदिर का फाइल फोटो)

मंदिर का निर्माण –

ईड़गुनाथ मंदिर का निर्माण बहुत ही बड़े – बड़े विशालकाय पत्थरों से जोड़ कर बना हुआ है। आज से करीब 540 ई० पूर्व में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। मंदिर में भगवान शिवजी और माता पार्वती का मुर्तियां विराजमान है। भक्त और श्रद्धालु भगवान शिवजी और पार्वती का पूजा करते है और अपनी मन्नते मांगते है।

मंदिरों की संख्या – मेला में भगवान शिवजी, पार्वती और ईड़गुनाथ समेत कुल तीन मंदिर विराजमान है। भगवान शिवजी से 100 मीटर की दूरी पर पीपल वृक्ष के नज़दीक माता पार्वती की मूर्ति है।

मेला – ईड़गुनाथ मेला प्रत्येक वर्ष 15 जून जेष्ठ माह के अंतिम को लगता है। मेले में विभिन्न क्षेत्रों के लोग दर्शन करने के लिए पहुंचते है। मेले के दिन मेले में काफी भीड़ होती है। मेला के दिन आम का भंडारण लगा होता है, जो बहुत ही सस्ते दामों में मिलता है। मेला में तरह – तरह के एक से एक अत्याधुनिक हथियार एवं औजार मिलता है। लोग अपनी इच्छानुसार खरीदते है। मेला में कोई तरह के खिलौने एवं झूले लगे होते है। लोगों का खाने पीने के लिए बहुत सारे होटल की भी व्यवस्था रहती है।

तालाब की विशेषताएं –

मंदिर के सामने दो बड़ा – बड़ा तालाब है जो एक उपर में और एक नीचे है। लोगो का मानना है कि मेला के दिन नवविवाहित का जोड़े तालाब में आकर डुबकी लगाते है। अगर डुबकी लगाते समय पहले हाथ लगाते वक्त पत्थर आता है तो बेटा और खेपती आती है तो बेटी होती है, ऐसा माना जाता है।

मधुमक्खी के छत्ते – मेला में विशाल मधुमक्खी के कोई छत्ते करम के पेड़ पर वर्ष से अवस्थित है। लोगो का मानना है कि मधुमक्खियां मेले के दिन किसी को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचाते है।

यातायात का साधन एवं सुरक्षा व्यवस्था –

मेले में जाने के लिए सड़क मार्ग एवं रेलमार्ग दोनों उपलब्ध है। रेलमार्ग के लिए मेला से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर सुईसा रेलवे स्टेशन है। ऑटो से भाड़े में करके आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते है। अधिकांश लोग मेला देखने के दोपहिए वाहन का इस्तेमाल कर मेला देखने पहुंचते हैं।

मेला में बंगाल सरकार की तरफ से मेला के दिन पुलिसकर्मी तैनात किए जाते है। जो लोगों की शांति व्यवस्था को बनाए रखने में मददगार होते है। मेला में शाम होते- होते मेला में भीड़ कम हो जाती है,और मेला का समापन हो जाता है।

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