भारतीय लोकतंत्र का सबसे दुःखद अध्याय 1975 के आपातकाल को लेकर भारतीय जनता पार्टी 25 जून को झारखंड सहित पूरे देश में काला दिवस के रूप में मनायेगी। इसी विषय को लेकर भाजपा ने प्रदेश कार्यालय में प्रेस वार्ता को संबोधित किया और बताया कि राज्य के सभी जिलों में आपातकाल पर गोष्ठी कर लोगों को बताया जाएगा कि आपातकाल के दौरान जनता पर क्या-क्या जुल्म हुए थे।
विधायक सीपी सिंह ने दी जानकारी
भाजपा पार्टी के रांची के विधायक सीपी सिंह ने प्रदेश कार्यालय में प्रेस वार्ता करते हुए बताया कि भाजपा पूरे देश में 25 जून को 1975 आपातकाल की बरसी पर ‘काला दिवस’ मनाएगी। काला दिवस के मौके पर भाजपा लोगो को आपातकाल के दौरान जनता पर हुए जुल्मों के बारे में बताएगी। विधायक सीपी सिंह ने बाद में इसे ट्विटर पर ट्वीट भी किया।
क्या है 1975 का आपातकाल?
25 जून 1975, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में इस दिन को देश के सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन की संज्ञा दी जाती है। 46 साल पहले आज के ही दिन देश के लोगों ने रेडियो पर एक ऐलान सुना और मुल्क में खबर फैल गई कि सारे भारत में अब आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। 46 साल के बाद भले ही देश के लोकतंत्र की एक गरिमामयी तस्वीर सारी दुनिया में प्रशस्त हो रही हो, लेकिन आज भी अतीत में 25 जून का दिन डेमॉक्रेसी के एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच देश में 21 महीने तक आपातकाल लगाया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी। 25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया था। अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना था, ‘भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।’
आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था। 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया था। जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। जेलों में जगह नहीं बची थी।